यह कैसा मन का तुरंग है ? एक साथ ही मौरावाँ का जमींदारी इलाका, दुबई की जगमगाती शाम और रामगढ के आड़ू, खूबानी, प्लम याद आते हैं भूलते ही नहीं देर तक आँखों के सामने से हटते ही नहीं दृश्य सब सजीव साकार होकर नाचने लगते हैं - क्या करूँ इस मन का ?
हिंदी समय में स्नेहमयी चौधरी की रचनाएँ